Tuesday, July 8, 2025

भारतीय सांस्कृतिक चेतना का वैश्विक जयघोष : श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र

 

भारतीय सांस्कृतिक चेतना का वैश्विक जयघोष

सुमन कुमार , उप सचिव (नाटक/ अमूर्त सांस्कृतिक विरासत), संगीत नाटक अकादेमी, दिल्ली

18 अप्रैल 2025 को श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र  का यूनेस्को की विश्व स्मृति सूची में शामिल घोषित किया गया 

यह सभी भारतवंशी के लिए अत्यंत गर्व, आत्मीयता और सम्मान  की बात है कि भारत के दो अमूल्य सांस्कृतिक ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को (UNESCO) के "Memory of the World Register", अर्थात् विश्व स्मृति सूची में 18 अप्रैल 2025 को  सम्मिलित किया गया है। यह न केवल भारत के लिए, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। यह वह क्षण है जहाँ हमारीभारतीय प्राचीन ज्ञान परंपरा, आध्यात्मिक विवेक और कलात्मक दृष्टि और जीवंतता को वैश्विक मंच पर वह सम्मान प्राप्त हुआ है जिसका वह युगों से अधिकारी रहा है ।

हम भारतीयों के लिए यह केवल एक सांस्कृतिक मान्यता नहीं है, यह हमारी अस्मिता, हमारी परंपराओं, हमारी वाणी, हमारी दृष्टि और हमारे आत्मबोध की वैश्विक विजय है। श्रीमद्भगवद्गीता जहां जीवन के सत्य, कर्तव्य और आत्मज्ञान की दिव्य दृष्टि देती है, वहीं नाट्यशास्त्र हमें रस, भाव, नृत्य, नाट्य और संगीत के माध्यम से मानव अनुभूति की सूक्ष्मता सिखाता है। इन दोनों ग्रंथों को जब यूनेस्को जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था विश्व स्मृति सूची में सम्मिलित करती है, तो वह भारत की सांस्कृतिक चेतना को केवल सम्मानित ही नहीं करती, उसे एक विश्वस्मृति का रूप देती है।

मेमोरी ऑफ वर्ल्ड रजिस्टर

यूनेस्को का Memory of the World Programme (विश्व स्मृति कार्यक्रम) 1992 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य है दुनिया भर के अद्वितीय, दुर्लभ, और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण दस्तावेजों, ग्रंथों, पांडुलिपियों, ऑडियो-विजुअल अभिलेखों और अन्य अभिलेखीय सामग्रियों को संरक्षित करना और उन्हें वैश्विक पहचान देना।

इसका रजिस्टर उन दस्तावेजों की सूची है जिन्हें मानव सभ्यता के लिए अत्यंत मूल्यवान माना जाता है वे दस्तावेज जो न केवल किसी देश विशेष की धरोहर हैं, बल्कि पूरे विश्व की सांस्कृतिक स्मृति का हिस्सा हैं।

इस पहल का उद्देश्य है:

  • सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करना।
  • विश्व की सांस्कृतिक स्मृति को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना।
  • अभिलेखीय ज्ञान के क्षेत्र में शोध को प्रोत्साहन देना।
  • विश्व विरासत की पहचान और उसके संरक्षण के प्रति जनजागरण करना।

वर्ष 2024 तक, इस रजिस्टर में 500 से अधिक स्मृति-पुस्तकें, ग्रंथ, और अभिलेख शामिल किए जा चुके हैं। ये विभिन्न भाषाओं, सभ्यताओं और भूगोल से संबंधित हैं। इनमें कुछ प्रमुख उदाहरण हैं:

  • Magna Carta (1215, इंग्लैंड)संवैधानिक अधिकारों का ऐतिहासिक दस्तावेज।
  • The Diaries of Anne Frank (नीदरलैंड)होलोकॉस्ट के दौरान एक किशोरी की डायरी।
  • The Rigveda (भारत)विश्व की सबसे प्राचीन वैदिक संहिताओं में से एक।
  • The Archives of Nelson Mandela (दक्षिण अफ्रीका)मानवाधिकार और स्वतंत्रता संग्राम की अमूल्य स्मृति।
  • The Gilgamesh Epic (मेसोपोटामिया)मानव सभ्यता की पहली साहित्यिक रचनाओं में से एक।

यह सूची वैश्विक दृष्टि से उस ज्ञान, स्मृति और अनुभव का साक्षात्कार कराती है, जो मानवता को उसकी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ती है।

भारत की ओर से इस रजिस्टर में अब तक जो प्रमुख दस्तावेज और ग्रंथ सम्मिलित हुए हैं, उनमें शामिल हैं:

  • ऋग्वेद की बिर्ला पांडुलिपि (Bhandarkar Oriental Research Institute, पुणे)
  • नील दर्पण (Bengali नाटक, जो 19वीं सदी के नील आंदोलन पर आधारित है)
  • नानक सिंह की जेल नोटबुक (भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित)
  • श्रीमद्भगवद्गीता (2024 में शामिल)
  • नाट्यशास्त्र (2024 में शामिल)

ये ग्रंथ भारत की उस गहन  सांस्कृतिक गहराई को प्रकट करते हैं जहाँ ज्ञान, साहित्य, धर्म, कला, राजनीति, और सामाजिक चेतना एक समवेत अनुभव बन जाते हैं। 

श्रीमद्भगवद्गीता  न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है अपितु 

  • यह जीवन का मार्गदर्शन है।
  • यह आत्मा और परमात्मा के संवाद की गहराई है।
  • इसमें कर्म, भक्ति, ज्ञान और योग के चारों पथों को संतुलित दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है।
  • यह जीवन में विवेक, आत्मनिष्ठा और कर्तव्यबोध की सीख देती है।

इस ग्रंथ ने न केवल भारत के अध्यात्म को आकार दिया, बल्कि विश्वभर में जीवन-दर्शन को प्रभावित किया है गांधी, टॉलस्टॉय, थोरू, आइंस्टीन जैसे विचारकों ने इससे प्रेरणा ली है।

नाट्यशास्त्र भरतमुनि द्वारा रचित ऐसा अनूठा यह ग्रंथ है जो न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व का पहला नाट्य एवं कला का प्रायोगिक संकलित ज्ञान है जो काल निरपेक्ष है ।

  • इसमें रस, भाव, अभिनय, संगीत, वेशभूषा, मंच संयोजन आदि के सिद्धांत दिए गए हैं।
  • यह केवल कलाकारों के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज के सांस्कृतिक विकास और सौंदर्य चेतना का शास्त्र है।
  • इसमें वर्णित 'नाट्य' को पंचम वेद की संज्ञा दी गई है जिसमें वेदों की शिक्षा को लोकभाषा और अभिनय के माध्यम से जनसामान्य तक पहुँचाया गया।

नाट्यशास्त्र को यह विशेष स्थान सदा से इसीलिए प्राप्त रहा है क्योंकि यह न केवल कला की तकनीकी व्याख्या करता है, बल्कि मानवीय विविधताओं को सौंदर्य का रूप देने की चेतना विकसित करता है। यह ग्रंथ संवेदना, समरसता और सौंदर्यबोध की शिक्षा देता है जो वर्तमान विश्व के लिए अत्यंत आवश्यक है।

नाट्यशास्त्र कला का दर्शन, अभ्यास और सौंदर्यबोध का नया वैश्विक अध्याय है । नाट्यशास्त्र को केवल एक तकनीकी ग्रंथ के रूप में देखना उसकी गरिमा को सीमित करना होगा। यह एक जीवंत दार्शनिक दृष्टिकोण है जहाँ कला केवल मनोरंजन नहीं, जीवन की प्रतिकृति बन जाती है।

  • इसमें सौंदर्य की विविधता को स्वीकार कर उसे आदर्श बनाया गया है।
  • यह रचना सामाजिक समरसता, मानवीय करुणा, और सांस्कृतिक सौहार्द को पुष्ट करती है।
  • भरत मुनि ने नाट्य को एक ऐसा माध्यम माना है जो मनुष्यों के दैनंदिन दुःख-सुख को संतुलित करता है।

आज, जब विश्व विविधताओं के टकराव से जूझ रहा है, नाट्यशास्त्र हमें सिखाता है कि विविधता कोई विघटन नहीं, बल्कि सौंदर्य का विस्तार है।

इस ग्रंथ की यूनेस्को सूची में उपस्थिति केवल भारत के अद्अवितीय जीवंत परम्तीपरा की स्वीकृति ही नहीं, बल्कि एक वैश्विक संवाद की नई शुरुआत है जहाँ मंच पर कलाकार और दर्शक नहीं, बल्कि मनुष्य और उसकी आत्मा संवाद करती है।

श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र की इस वैश्विक मान्यता से आने वाले वर्षों में कई सकारात्मक परिवर्तन संभव हैं और संस्कृतिसंवाद और आजीविका के नए आयाम भविष्य की संभावनाओं के नए क्षितिज खुलेगा और:

  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनके शोध और अनुवाद को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • भारतीय कलाकारों, रंगकर्मियों और अध्येताओं को नाट्यशास्त्र आधारित प्रस्तुतियाँ, कार्यशालाएँ और अध्यापन के नए मंच मिलेंगे।
  • शैक्षणिक संस्थानों में नाट्यशास्त्र और गीता को एक अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में पढ़ाया जाएगा।
  • अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक विनिमय और सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
  • नाट्यशास्त्र आधारित स्थानीय परंपराओं, लोक कलाओं और शास्त्रीय रंगमंच को वैश्विक मंच पर पहुँचने का अवसर मिलेगा।

इस तरह यह उपलब्धि न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर को मान्यता देती है, बल्कि यह एक नए सांस्कृतिक युग का द्वार भी खोलती है जिसमें भारतीय कला, साहित्य और दर्शन वैश्विक मानचित्र पर नई ऊँचाइयाँ प्राप्त कर सकते हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को की विश्व स्मृति सूची में सम्मिलित होना एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, लेकिन यह केवल सम्मान नहीं यह उत्तरदायित्व भी है। अब यह हम सबका कर्तव्य है कि:

  • हम इन ग्रंथों को पुस्तकों की धूल में नहीं छोड़ें, बल्कि उन्हें जीवन की प्रेरणा बनाएं।
  • हम अपने बच्चों, छात्रों, कलाकारों और समाज को इनसे जोड़ें।
  • हम इसे केवल भारत की विरासतन कहें, बल्कि मानवता की धरोहरके रूप में प्रस्तुत करें।

इन ग्ग्रंरंथों में केवल पृष्ठों पर अंकित शब्द, शब्द  मात्नर नहीं हैं ये हमारी सांस्कृतिक चेतना की  जीवंत धमनियां  हैं, जो युगों से धड़क रही है और एक बार फिर नए जयघोष के साथ विश्वमंच पर गूंज रही है।

जय भारत।
जय संस्कृति।
जय मानवता।

 

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